Monday, December 21, 2009

बाल साहित्य की चुनौतियां

बच्चों के लिए किताबें कम लिखी जा रही हैं या फिर बच्चों द्वारा कम पुस्तकें पढ़ी जा रही हैं। दोनों का जवाब एक हो सकता है। बच्चों के लिए कम किताबें लिखी जा रही हैं क्योंकि उनको पढ़ा कम जा रहा है। मार्केट का फार्मूला- 'डिमांड एंड सप्लायीÓ का है। जिस चीज की मांग होती है उसको उपलब्ध कराया जाता है। इसके विपरीत बाजार डिमांड पैदा भी करवाता है। बाल साहित्य के मामले में बाजार का रूख उदासीन ही बना हुआ है। बाल साहित्य के बाजार का विस्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जो जैसा है वैसा परोसा जा रहा है। 'हैरी पॉटरÓ जैसी कृति ने बच्चों की दुनिया में खलबली जरूर मचाई है लेकिन भारतीय बाल साहित्य का कोई ऐसा पात्र नहीं है जिसकी डिमांड बच्चों की ओर से हो। किताबों की दुनिया का विस्तार आज के युग में अपेक्षानुकूल नहीं हो पा रहा है। ऐसे में बाल वर्ग की किताबों की दुनिया हशिए पर है। बड़ों के पास उनके लिए सोचने का समय नहीं है। दरअसल बाल साहित्य लेखनकी मानसिकता पर लिखना सरल काम नहीं है। गंभीर लेखन करने वाले वरिष्ठï साहित्यकारों के लिए भी बच्चों के लिए कलम चलाना कठिन काम रहता है। यह जरूर है कि नामवर सिंह जैसे शीर्षस्थ साहित्यकार यह जरूर मानते हैं कि जब तक साहित्यकार बच्चों के लिए नहीं लिखेंगे बड़े नहीं होंगे। शायद इस कारण ही प्रेमचन्द्र से लेकर, अमृतलाल नागर, नरेन्द्र कोहली व धर्मवीर भारती जैसे साहित्यकारों ने बच्चों के पक्ष में कलम जरूर चढ़ायी है। इन सबके बाद भी बच्चों के किताबों की दुनिया इस समय गुलजार नहीं है। बाल साहित्य की दिशा और दशा पर पिछले दिनों राजधानी में सार्थक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
निश्चित रूप सेइस आयोजन में इस बिन्दु पर चर्चा की गयी कि एक समय में समृद्ध बाल साहित्य की स्थिति आज ऐसी क्यों है? प्रकाशन विभाग के स्थानीय प्रमुख सूर्यकांत शर्मा कहते हैं कि बाल वर्ग में किताबों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन अपेक्षा इससे कहीं अधिक की है। वे मानते हैं कि संचार क्रांति ने किताबों की दुनिया में दखल देना तो शुरू किया है लेकिन यह दखल इतना मजबूत नहीं है कि हम किताबों के संसार को नजरअंदाज कर दें।
बाजार की चुनौती उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने की है। भारतीय बाल साहित्य खुद की मार्केंटिंग नहीं कर पा रहा है। शायद यही कारण है कि 'हैरी पॉटरÓ जैसी कामयाबी भारतीय वर्ग की किताबों को नहीं मिल पायी है।
'पंचतंत्रÓ की कहानियों की चर्चा और लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है। हमारे यहां बाल साहित्य लेखन की समृद्ध परम्परा रही है। रूप नारायण दीक्षित, ठाकुरदत्त मिश्र, धर्मवीर भारतीय, अयोध्या प्रकाश झा, मस्तराम, अमृतलाल नागर, नरेन्द्र कोहली सहित शीर्षक रचनाकारों ने बाल साहित्य को सम्पन्न किया है। इस कारण यह तो नहीं कहा जा सकता है कि साहित्यकारों ने बाल साहित्य की ओर ध्यान नहीं है। दरअसल बाल साहित्य समय के अनुसार खुद को सम्पन्न नहीं कर पाया। बाल साहित्य को नये विषयों की तलाश आज के परिवेश में है। ये विषय उनको फंतासी की दुनिया से इतर ले जाने में कामयाब हो तो अच्छा रहे। अगर फंतासी की बात की भी जा रही हो तो उसमें तर्कपूर्ण विवेचना हो जो बाल व किशोर मन को प्रभावित कर सकें। इस संदर्भ में लखनऊ के बाल साहित्यकार संजीव जायसवाल 'संजयÓ की पुस्तक 'मानव फैक्स मशीनÓ का उल्लेख किया जा सकता है। इस पुस्तक में कई कहानियों के माध्यम से बच्चों को विज्ञान की दुनिया की सैर करवायी गयी है। विज्ञान की उन्नति से क्या लाभ और हानि हो सकती है, इसे बताने का प्रयास भी इस पुस्तक में किया गया है। लखनऊ के बाल साहित्यकार विनायक ने बच्चों की कृतियों में प्रकृति और वन्य जीवन का वर्णन कर एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास किया है। उनकी कहानियां एक ओर तो प्रकृति संरक्षण अभियान से बच्चों को जोडऩे का प्रयास करती हैं तो दूसरी ओर आने वाले खतरे के प्रति सचेत भी करती जाती हैं। अगर जंगल और पर्यावरण सुरक्षित नहीं रहे तो आदमी का जीवन खतरे में पड़ जायेगा। विनायक के उपन्यासों का मूल संदेश यही है।
वास्तव में उपन्यास चाहे बच्चों के लिए लिखा जाये या बड़ों बच्चों के लिए, संवेदना उसका मूल्य तत्व रहता है। लेखक अपनी कहानी या उपन्यास का हर एक पात्र स्वयं में जीता है। बच्चों के लिए लेखन इस कारण से चुनौतीपूर्ण हो जाता है क्यों उसकी रचना प्रक्रिया में बाल मनोविज्ञान का विशेष रूप से ध्यान रखना पड़ता है।
बाल साहित्यकार रमेश तैलंग कहते हैं कि बदले हुए समय में बाल साहित्य की चुनौतियां झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। देखा जाये तो हिन्दी के वरिष्ठï साहित्यकार इस मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं कि बच्चों के लिए लिखना दोयम दर्जे का काम है। इस कारण से सिर्फ शगुन रूप में बच्चों के लिए कलम चलायी जाती है।
बाल साहित्य की भाषा शैली को लेकर भी कई बार चर्चा होती है। बाल साहित्यकारों का कहना है कि बाल साहित्य की भाषा सरल और सुगम होनी चाहिए जो आम लोगों को आसानी से समझ में आ जाये। उपन्यास में प्रचलित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। बिना गंभीर चिन्तन और मनन के श्रेष्ठï बाल साहित्य नहीं लिखा जा सकता है। बाल साहित्यकार सुरेन्द्र विक्रम का कहना है कि न सिर्फ बाल साहित्य बल्कि बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं ने भी बच्चों को अक्षरों की दुनिया से जोडऩे का सफल प्रयास किया है। आज के परिवेश में नये सिरे से बच्चों की किताबी दुनिया को आकार देना होगा। मौजूदा समय में बच्चों के सामने टेलीविजन और इंटरनेट का विकल्प मुख्य रूप से है। सुनहरे पर्दे ने उनको आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे में बच्चों की किताबों में कुछ नया परोसना नितान्त जरूरी हो जाता है। ऐसा नहीं है कि बाल साहित्यकार इन चुनौतियों के प्रति सचेत न हो लेकिन विडम्बना तो यह है कि गंभीर वे फिर भी नहीं हो पाये हैं। बाल साहित्य आलोचना से अछूते ही रहते हैं। उन पर व्यापक चर्चा नहीं हो पाती है।
आज बाल साहित्य संक्रमण काल से गुजर रहा है। अगर समय रहते बाल साहित्य के विषय में गंभीरता से चिन्तन-मनन नहीं किया गया तो आने वाले समय गंभीर परिणाम दे सकता है। बाल साहित्य की कृतियों पर टेलीविजन ने धारावाहिक बनाने भी कम कर दिए हैं। टेलीविजन आज के धारावाहिकों में वहीं सब परोस रहा है जिसके माध्यम से बाजार को विस्तार मिलता है। बच्चों के लिए जो धारावाहिक बनाये जा रहे हैं उसमें फंतासी को अधिक परोसा जा रहा है। बाल उपन्यास पर 'मालगुड़ी डेजÓ जैसे धारावाहिक अब नहीं बन रहे हैं। हिन्दी की पुरानी साहित्यिक कृतियों को तो बड़े पर्दे पर जीवंत किया जा रहा है लेकिन बाल उपन्यास पर इधर किसी फिल्म का निर्माण नहीं किया गया है। साहित्यिक कृतियों पर धारावाहिक तथा फिल्म के कारण संबंधित कृति की मांग बढ़ जाती है। फिल्म 'देवदासÓ के प्रदर्शन के बाद बाजार में इस उपन्यास की मांग भी बढ़ गयी थी। दरअसल धारावाहिक और फिल्म कृतियों की मार्केंटिंग का सरल और सुगम माध्यम साबित हो सकते हैं। अगर पर्दे को किताबों की दुनिया से कुछ श्रेष्ठï मिल जाये और किताबों का भला भी इससे हो जाये तो इसमें कोई बुरायी नहीं होनी चाहिए।

रजनीश राज

4 comments:

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

rajneesh raj said...
This comment has been removed by the author.
कहकशां खान said...

बहुत अच्‍छा आर्टिकल। आपका ब्‍लाग भी उतना ही अच्‍छा है।

कहकशां खान said...

आपका ब्‍लाग और आर्टिकल दोनों ही अच्‍छे हैं।